दयालुता का प्रतिफल दयालुता से मिलता है
एक जवान आदमी ने एक बूढ़े आदमी की मुश्किल घड़ी में मदद की। कुछ दिनों बाद इस युवक को एक गंभीर अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया और हत्या की सजा सुनाई गई। सिपाही उसे लेकर जाने लगे। सारा शहर तमाशा देखने के लिए इकट्ठा हो गया। उनमें वह बूढ़ा आदमी भी था। अपने हितैषी को इस हालत में देखकर उसका दिल घायल हो गया और वह जोर- जोर से चिल्लाने लगा,
"हे लोगों! हमारे भले राजा की मृत्यु हो गई है। दुख की बात है कि आज दुनिया में अंधेरा हो गया है।"
सिपाही और दूसरे लोग यह खबर सुनकर निराश हो गए और नौजवान को वहीं छोड़कर राजा के महल के ओर भागे। उसे बूढ़े आदमी ने मौका को गनीमत जाना और नौजवान की जंजीरें खोलकर आजाद कर दिया और स्वयं उसकी जगह बैठ गया।
जब सैनिक महल पहुँचे तो उन्होंने राजा को जीवित और स्वस्थ पाया। जब वह वापस आए तो देखा कि वहां युवक की जगह बूढ़ा आदमी बैठा है। उसे गिरफ्तार कर राजा के सामने ले जाया गया और सारी कहानी बतायी गई।
राजा क्रोधित हुआ और पूछा, "ओह, तुमने मेरी मौत की खबर क्यों फैलाई, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?" बूढ़े ने हाथ जोड़कर कहा,
"महाराज! मेरे झूठ बोलने से आप पर कोई आंच नहीं आई,लेकिन मेरे मोहसिन (भला) नौजवान की जान बच गयी।
किसी वक्त उसने मेरी मदद की थी। आज मैंने उसे मुसीबत में देखा तो मेरी अंतरात्मा ने कहा कि उसकी मदद करूं, इसलिए मैंने यह तरकीब अपनाई।
यह कहानी सुनकर राजा इतना प्रसन्न हुआ कि
उसने न केवल बूढ़े व्यक्ति को इनाम और सम्मान के साथ रिहा कर दिया, बल्कि युवक को क्षमा करने का भी आदेश दिया।
नौजवान जेल से बाहर आकर इधर- उधर छुपाता फिर रहा था। किसी ने उसे क्षमा का शुभ समाचार सुनाया और पूछा, “तुम्हारा प्राण कैसे बच गया?”
उसने उत्तर दिया सहायता के लिए दी गई एक छोटी सी धनराशि।