अस्तित्व को नकारना तर्क के विरुद्ध है।

 


इमाम आज़म हजरत अबू हनीफा (अल्लाह उन से प्रसन्न हो) का एक नास्तिक के साथ चर्चा तय हो गई। बहस का मुख्य विषय थी कि ब्रह्मांड का कोई रचनात्मक है या नहीं? चर्चा का यह विषय और वह भी इतने बड़े ईमाम से! मैदान में क्या दुश्मन क्या दोस्त सभी जमा हो गए।

मगर हजरत इमाम आजम बहुत देरी से मैदान में पहुंचे। नास्तिक ने पूछा; आपने इतना समय क्यों लगाया?



उन्होंने कहा कि अगर मैं इस का उत्तर यह दूं कि मैं एक जंगल में गया था, तो वहां एक अजीब घटना हुई और मैं आश्चर्यचकित होकर वहां खड़ा हो गया, वह घटना यह थी कि नदी के किनारे एक पेड़ था। देखते ही देखते वह वृक्ष आप ही भूमि पर गिरा, फिर आप ही उसके तख्ते बन गए, फिर इन तख्तों से आप ही एक नाव बन गई, और आप ही नदी में जा पहुंची





और फिर आप ही यह यात्रियों को इधर- उधर लाने और ले जाने लगी फिर प्रत्येक सवारी से भाड़ा भी वसूलने लगी, तो बताओ, क्या तुम मुझ पर विश्वास करोगे?

यह सुनकर नास्तिक हंसा और बोला, 'मुझे आश्चर्य है कि आप जैसा महान आदमी झूठ बोले। ये चीजें अपने आप कहीं हो सकती हैं?' ऐसा तब तक नहीं हो सकता जब तक इसे कोई करने वाला न हो।



हजरत इमाम आजम ने कहा कि ये तो कुछ भी नहीं। वास्तव में, इससे भी बड़े- बड़े कार्य बिना किसी के किए स्वयं हो सकते हैं।

ये धरती, ये आसमान, ये चाँद सूरज, ये तारे, ये बाग, ये सैकड़ों रंग- बिरंगे फूल और मीठे फल 

ये पर्वत, ये मवेशी, ये मनुष्य और ये सभी बिना रचयिता के विकसित हो गया है, यदि एक नाव 

का बिना बनाने वाले के बन जाना मिथ्या है,

तो बिना रचयिता के सारा संसार का बन जाना और भी अधिक मिथ्या है।

वह नास्तिक आपकी बात से आश्चर्यचकित हो गया और तुरंत पश्चाताप किया और मुसलमान बन गया। (तफसीर कबीर पृष्ठ 221 खणड 1)

पाठ: वास्तव में इस ब्रह्मांड का एक निर्माता है जिसका नाम अल्लाह है। और अस्तित्व को नकारना भी तर्क के विरुद्ध है।


एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने