हज़रत मौलाना मुहम्मद याक़ूब साहब नानोतवी, (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो), जो हज़रत थानवी के जलील- उल- क़द्र शिक्षक थे, और दार उलूम, देवबंद के अध्यक्ष थे, एक बार कहा कि मैं एक दावत में गया और वहाँ भोजन किया। बाद में पता चला कि उस व्यक्ति की आय संदिग्ध थी. वह कहते हैं कि महीनों तक मेरे हृदय में इन चंद निवालों का
असर महसूस होता रहा और बहुत समय तक मेरे हृदय में पाप करने की भावनाएँ उठती रहीं और मेरे स्वभाव में बार- बार यही भावना उठती रही कि मैं पाप करूँ। ऐसा- वैसा पाप। यह अंधकार हराम के धन से पैदा हुआ है।