मदाइन ईरान के राजाओं का सिंहासन और हीरे जवाहरात का केंद्र था। कई वर्षों तक यह शहर अजम गैर अरब देश के छिपे खज़ानों का संरक्षक था। इस शहर में बड़ी मात्रा में बहुमूल्य संपत्ति एक निश्चित व्यक्ति को सौंप दीया जाता था। एक बार लोगों ने देखा कि एक नौ मुस्लिम हीरे-जवाहराता से भरी एक बंद थैली जिम्मेदार व्यक्ति के पास लाया, उससे पूछा गया, यह क्या है? लाने वाले ने कहा कि यह तो वही है जो आप देख रहे हैं। सरकारी अधिकारी ने पूछा, इसमें क्या है? उस ने कहा इसे खोल कर नहीं देखा उसमें क्या है। अगर मुझे ईश्वर पर विश्वास नहीं होता तो मैं इसे यहां नहीं लाता। मेरे इमान ने मुझे यह बैग लाकर यहां जमा करने के लिए प्रेरित किया। और अगर ईश्वर मौजूद है और देख रहा है, तो मैं किस तरह इस बैग को खोलने का साहस कर सकता हूं। कल्पना कीजिए इस नये मुसलमान के हृदय में विश्वास इमान कितना स्थापित हो गया था। एक आदमी जो बिल्कुल कंगाल है और उसे माल व दौलत की जरूरत है, मगर इतना बड़ा खजाना पाकर भी वह उसे खोलता तक नहीं!!
जब उनसे पूछा गया कि आपका नाम क्या है? तो वह उत्तर देता है कि मेरे नाम से क्या लेना देना मैं बस एक मुसलमान हुं। प्रभारी व्यक्ति ने कहा कि मैं यह दर्ज करना चाहता हूं कि आपने यह सेवा की है तो इस में से कुछ आप को मिलना चाहिए। युवक ने कहा. मैंने अपनी प्रशंसा के लिए यह थैला तुम्हें नहीं सौंपा। यह मेरे और मेरे अललाह के बीच का मामला है। मैं इतना घटिया नहीं हूं कि तारीफ और शाबाशी के लिए आपसे कोई छोटा-मोटा सौदा कर लूं। यह मामला मैं अल्लाह के साथ कर रहा हूं, तो वह अपनी शक्ति से मेरा हिस्सा मुझे देगा।