बुद्धिमान दास का प्रशंसनीय भाषण

बादशाह सलामत का दरबार लगा हुआ है, जरूरतमंद लाइन पर लाइन लगाकर आ रहे हैं। राजा प्रत्येक जरूरतमंद के अनुरोध पर उसकी इच्छा के अनुसार आदेश दे रहा है और दुआयें ले रहा है। इसी बीच एक व्यापारी आता है। वह राजा को प्रसन्न करने के लिए कुछ दास लाया है। राजा से दास पेश करने की अनुमति मांगी जाती है तो वह तुरंत अपनी स्वीकृति दे देता है। व्यापारी दास लेकर कुछ क्षण में हाजिर होता है। एक-एक कर गुलाम सामने लाया जाता है और उसके प्रमुख एवं उल्लेखनीय गुणों का वर्णन किया जाता है। जब सारे गुलाम बादशाह सलामत के सामने हाज़िर हो गये तो राजा ने पूछा क्या इन के अलावा और भी गुलाम हैं?

व्यापारी उत्तर देता है। बादशाह सलामत एक और गुलाम बाहर है परन्तु वह आपकेे योग्य नहीं है।” राजा ने आदेश दिया कि उस दास को भी प्रस्तुत किया जाये। गुलाम को तुरंत शाही दरबार में लाया जाता है। वह आदरपूर्वक अपना सिर झुकाता है और हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है। राजा उससे पूछाता है, तुम्हारा नाम क्या है? दास उत्तर देता है ‘‘गुलाम को आप चाहे जिस नाम से पुकारें, गुलाम तो गुलाम ही रहता है। राजा पूछता है खाने में क्या पसंद है? गुलाम उत्तर देता है, मालिक की मर्जी जो चाहे खिला दे। राजा पूछता है तुम्हारी कोई इच्छा, दास- मैं एक गरीब गुलाम हुं और मेरा कोई हक नहीं है कि कोई चाहत को दिल में जगह दुं। गुलाम के इन उत्तरों को सुनने के बाद, राजा हज़रत इब्राहिम बिन अधम (अल्लाह उन पर रहम करे) की चीख निकल गई और वह सचेत हो गए। कुछ देर बाद उन्हें होश आया तो देखते हैं कि गुलाम वैसे ही हाथ बांधे खड़ा है। आप अपने आपको संबोधित करते हुए कहते हैं. हे इब्न अधम! आप अपने आप को भगवान के दास होने का दावा करते हैं मगर आपका नाम और दरजा इस गुलाम से भी बदतर है। यह दास तुझ से अच्छा है, जो अपना सारा अधिकार अपने स्वामी को सौंप देता है मगर तुम अपना सारा अधिकार अपने पास रखते हो।

https://youtu.be/KAieVeUoqgy?si=Ww55y9vsCUJ1THM9


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